विश्व गुरु तब अर्चना में, भेंट अर्पण क्या करें ।
जबकि तन मन धन तुम्हारे, और पूजन क्या करें ।।
प्राची की अरुणिमा छटा है, यज्ञ की आभा विभा है,
अरुण ज्योतिर्मय ध्वजा है, दीप दर्शन क्या करें।।
वेद की पावन ऋचा से, आज तक जो राग गूंजे,
वन्दना के उन स्वरों में, तुच्छ वंदन क्या करें।।
राम के अवतार आए, कर्म मय जीवन चलाएं
अजिर तन तुझको चढ़ाएं, और अर्चन क्या करें।।
पत्र फल और पुष्प जल से, भावना ले हृदय तल से,
प्राण के पल पल विपल से, आज आराधन करें।।