सुभाषित - येषां न विद्या न तपो न दानं


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सुभाषित दो शब्दों सु + भाषित से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर भाषा में कहा गया| सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं जिनमे सुखी और आदर्श जीवन की अनमोल सीख छिपी हुई है | जैसे - 



येषां न विद्या न तपो न दानं,
ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्म:।
ते मृत्युलोके भूविभारभूता,
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरंति।।

***अर्थ***

जो विद्या और तप, दान और ज्ञान, 
शील और धर्म जैसे गुणों से रहित है, 
वह इस पृथ्वी पर भार है 
तथा मनुष्य के रूप में पशु के समान है।



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