सुभाषित - यत्रोत्साह समारंभॊ


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सुभाषित दो शब्दों सु + भाषित से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर भाषा में कहा गया| सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं जिनमे सुखी और आदर्श जीवन की अनमोल सीख छिपी हुई है | जैसे - 


यत्रोत्साह समारंभॊ, यत्रालस्य विहीनता।
नय विक्रयं संयोग:, तत्र श्री रचला ध्रुवम।।

***अर्थ***

जहां कार्य उत्साह से आरंभ होता है, 
आलस्य नहीं रहता, 
नीति व साहस का संगम होता है। 
वहां यश (विजय) निश्चित है।।

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