[7]
सुभाषित दो शब्दों सु + भाषित से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर भाषा में कहा गया| सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं जिनमे सुखी और आदर्श जीवन की अनमोल सीख छिपी हुई है | जैसे -
उद्यमेन ही सिद्धयन्ति,
कार्याणि न मनोरथे।
न ही सुप्तस्य सिंहस्य,
प्रविशन्ति मुखे मृगा।।
***अर्थ***
कार्य करने से ही सिद्ध होते हैं,
केवल इच्छा मात्र से नहीं
जैसे सोए हुए सिंह के मुख में
हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करते।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें