सुभाषित - उद्यमेन ही सिद्धयन्ति


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सुभाषित दो शब्दों सु + भाषित से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर भाषा में कहा गया| सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं जिनमे सुखी और आदर्श जीवन की अनमोल सीख छिपी हुई है | जैसे - 

उद्यमेन ही सिद्धयन्ति, 
कार्याणि न मनोरथे।
 न ही सुप्तस्य सिंहस्य, 
प्रविशन्ति मुखे मृगा।।

***अर्थ***

कार्य करने से ही सिद्ध होते हैं, 
केवल इच्छा मात्र से नहीं 
जैसे सोए हुए सिंह के मुख में 
हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करते।
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