सुभाषित - शक्त्या विहिना पुरुषा हि लोके


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सुभाषित दो शब्दों सु + भाषित से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर भाषा में कहा गया| सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं जिनमे सुखी और आदर्श जीवन की अनमोल सीख छिपी हुई है | जैसे - 


शक्त्या विहिना पुरुषा हि लोके,
नेतु न राष्ट्रम प्रभवंती नूनम।
देवा अपीमा समुपास्य शक्ति,
शुंभादि दैत्यान समरे निजध्नु।।

***अर्थ***

शक्ति के बिना कोई भी पुरुष 
अपने राष्ट्र की रक्षा नहीं कर सकता। 
देवता भी शक्ति की आराधना करके 
शुंभ आदि दैत्यों का संहार करने में सक्षम हुए।
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