सुभाषित - विरोधिनोअपि श्रोतव्यं




[1]
सुभाषित दो शब्दों सु + भाषित से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर भाषा में कहा गया| सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं जिनमे सुखी और आदर्श जीवन की अनमोल सीख छिपी हुई है | जैसे - 



विरोधिनोअपी श्रोतव्यं, 
आत्मलीनतयामतम |
तात्कालम न विरोद्धव्यम, 
यथाकालं तू खंडयेत ||



***अर्थ***

विरोधियों के विचार को भी 

आत्मीयतापूर्वक सुनना चाहिए 
और तत्काल उसका विरोध
नहीं करना चाहिए| 
बाद  में उचित समय पर
बात का खंडन करना चाहिए |





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