
भारत माँ के चरण कमल पर तन मन धन कर दे न्यौछावर
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भारत माँ के चरण कमल पर तन मन धन कर दे न्यौछावर
साधक आज प्रतिज्ञा कर ले जननी के इस संकट क्षण पर ॥धृ॥
रुदन कर रहा आज हिमालय सिसक रही गंगा की धारा
दग मग है कैलास शंभु का व्यथित आज बद्रिश्वर प्यारा
उधर सुलगती वन्हि शिखा लख भयकम्पित निज नन्दनवन है
अमरनाथ के पावन मंदिर पर अरियोंका कृद्ध नयन है
निज माता की लाज बचाने हम सब आज बने प्रलयंकर ॥१॥
मातृभूमी का कंकर कंकर आज महा शंकर बन जाये
थिरक उठे ताण्डव की गती फिर विश्व पुनः कम्पित हो जाये
खुले तीसरा नेत्र तेज से अरी दल सारा भस्मसात हो
चमके त्रिशूल पुनः करों में अरी षोणित से तप्तपात हो
जय के नारे गून्जे नभ में जले विजय का दीप घर घर ॥२॥
राणा के उस भीषण प्रण को आज पुनः हम सब दोहराए
त्यज देंगे सारा सुख वैभव जब तक माँ का कष्ट न जाए
क्या होगा माता के कारण अगर राष्ट्र के लिये मरेंगे
भूमी शयन घांसों की रोटी खाकर भी सब व्यथा हरेंगे
निश्चित होगी विजय सत्य की दुष्मन काँपेंगे थर थर थर ॥३॥
भारत माता की जय
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