हिन्दू दृष्टिकोण

हिन्दू दृष्टिकोण

                                  हिन्दू की विशेषता है, चिंतन में | हर विषय की जड़ तक जाकर विश्लेषण करना हमारी पद्धति है | बाहर के चमक-धमक से ज्यादा, सच्चाई को खोजने की दृष्टि है | इसलिए हिन्दू चिंतन सर्वकालिक और सार्वदेशिक है |
  ईश्वर एक, नाम अनेक |
🚩 ईश्वर सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है |
  ईश्वर दण्ड नहीं देगा, वह रक्षा करता है | 
🚩  मनुष्य पापी नहीं है, उसमे दैवी अंश है |
  नर को नारायण ही बनना है और इसीलिए भारत में जन्म मिला है |
🚩 नर का उद्धार स्वयं के हाथ में है | किसी दलाल की आवश्यकता नहीं | "उद्देरादात्मनात्मानं "
  संसार केवल मनुष्य के लिए नहीं अपितु सभी 84 लाख जीवजंतु के लिए भी है |
🚩 प्रकृति मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकती है, लालसा को नहीं |
  जीवन एक चक्र जैसा घूमता रहता है, आज के ऊपर वाले  कल नीचे आ जाने की संभावना है, नीचे वाले ऊपर जा सकते हैं |
🚩 "पुनरपि जननं पुनरपि मरणं" देह मरता है, जीव नहीं | हर जीव अपने शरीर को त्याग करता है और दूसरा शरीर धारण करता है | 
  देह नश्वर, आत्मा शाश्वत| शरीर के लिए जैसा कपड़ा वैसा ही आत्मा के लिए शरीर |
🚩 सभी मानव समान नहीं हैं, सब में कुछ न कुछ विशेषता रहती है | किन्तु सब में एक ही आत्मा रहती है | 
  हिंदुत्व किसी को बाहर नहीं फेंकता, सबको जोड़ता है | वह 'भी' वाद को मानता है, 'ही' वाद को नहीं मानता | 
🚩 करने वाले सभी कर्मो के फल निकलना जरुरी है | पुण्य और पाप ही कर्मफल हैं | दुसरो का भला करने पर पुण्य और बुरा करने पर पाप प्राप्त होता है | पुण्य करते रहना और पाप कभी नहीं करना | यदि पाप किया तो सुधारना चाहिए |  
  कर्म के अनुरूप अगला जन्म मिलता है |
🚩 स्त्री-पुरुष आपस में पूरक हैं | स्त्री आदरणीय, गौरव का पात्र है | "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" जहाँ नारी की पूजा होती है, वहां देवता आनंद से रहते हैं | भारत में नारी परम आदरणीय है, वह माता बनने वाली है | सन्यासी भी माँ को नमन करता है |
  नारी भोगवस्तु नहीं बननी चाहिए | वंचित या शोषित नहीं बननी चाहिए | 
🚩 स्नेह और अनुनेसे सामाजिक परिवर्तन होता है, द्वेष और लड़ने से नहीं | श्रेष्ठ  के माध्यम हैं, वे निर्मोही हैं, निर्लोभी हैं | समाज पर वे अपर प्रेम रखते हैं | उनसे ही समय-समय पर आवश्यक परिवर्तन होता रहता है | वे ऋषि कहलाते हैं | 
   जाति का नाश करने का कदम नहीं उठाना | उसका नाम तक नहीं लेते हुए जाति को पार कर आगे बढ़ने का विवेक अर्जित करना चाहिए | हमे खुद जातियों में नहीं फंस जाना है | 
   हर एक के कर्त्तव्य होते हैं | कर्त्तव्य का पालन करने पर अन्यों के अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं |
🚩 कमजोर की रक्षा और पालनकर, उनको एक उत्तम जीवन प्रणाली प्राप्त कराना शेष जनों का धर्म है | 
  धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा | प्रकृति हमारी माता है, उसका पूजन करो | स्वयं भगवान बन जाना ही मानव जीवन का लक्ष्य है | "आत्मनो मोक्षार्थ जगत हिताय च" ऐसे सैकड़ो शाश्वत सत्य, हिन्दू चिंतन से प्राप्त व विकसित हुए और हजारो वर्षो से इस समाज की संपत्ति बन गए | इन सत्यों के अनुरूप जिन्होंने अपना जीवन जिया, उन्होंने इनको, अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित किया | इस तरह जो पीढ़ी से पीढ़ी तक चलती है, वही संस्कृति बन जाती है | इस देशमें भले ही व्यक्ति अनपढ़ हो, परन्तु वह सुसंस्कारित रहा | उसमें संस्कृति की जड़ जम गयी | नतीजा ऐसा हुआ की उसका व्यवहार अनुकरणीय रहा | बच्चों के लिए बुजुर्ग आदर्श हो गए | बच्चे बड़ो जैसा जीवन जीने लगे, वही परम्परा बन गयी | इस परम्परा को आगे बढ़ाने में 'परिवार' ने अहं भूमिका निभाई |  
                             परिवार में बुजुगों के चिंतन और व्यवहार  पारिवारिक संस्कार बन गए | संस्कारों के परिणाम स्वरुप व्यक्ति-व्यक्ति का जीवन चमकने लगा | "प्राण जाय पर वचन न जाई "    "प्राण जाय पर धर्म न छोड़े" ........ ऐसी दृढ़ता बालकों में  प्रगट होने लगी | 
                              किन्तु आधुनिकता की आंधी में जैसे अन्य समाजो में शिथिलता आयी है हमारा समाज भी अपवाद नहीं रहा है | इसमें भी कमजोरियां घुस रही हैं | फिर भी आपसी सम्बन्ध और  विश्वास सुदृढ़ रहने से आज की अवस्था में भी सिर्फ परिवार, समाज के सजीव अंग  हैं | यह एक अनुभव सिद्ध सत्य है | यही इतिहास का बोध है | 
Share:

Wikipedia

खोज नतीजे

Popular Posts

फ़ॉलोअर