बोधकथा - रहट की टक टक


रहट की टक टक



                                    एक घुड़सवार था घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहा था। धूप तेज थी। वह घोड़े को तेज दौड़ा रहा था। घुड़सवार को प्यास लगी। घोड़ा भी थक गया था। काफी दूरी पर घुड़सवार ने एक रहट चलते देखा। घुड़सवार ने कहा, अच्छा हुआ। चलो रहट से पानी पी ले और घोड़े को भी पानी पिला दे। वह उस स्थान पर जहां रहट चल रही थी पहुंचा। घोड़े को बांध दिया। पहले उसने अपने हाथ पैर धोए और मुंह भी धोया और पानी पिया। उसने घोड़े को लाकर पानी के पास खड़ा किया। घोड़े ने जैसे ही पानी में मुंह लगाया रहट की बाल्टी बोली 'खट'। घोड़ा उस और चौकन्ना हो कर देखने लगा।
                              घोड़े की आदत थी आवाज सुनकर चौकन्ना होना। जब घोड़े ने पानी में मुंह लगाया रहट की बाल्टीयों की टक-टक, खट-खट के कारण उधर ही चौकन्ना होकर देखता था। घुड़सवार ने रहट चलाने वाले से कहा भाई रहट चलाना बंद कर दो ताकि मेरा घोड़ा पानी पी ले। उसने रहट चलाना बंद कर दिया तो पानी आना बंद हो गया और जो पानी नाली में था वह भी बह गया घोड़ा पानी नहीं पी सका।
                                 कई बार रहट बंद करने के बाद भी जब घोड़ा पानी नहीं पी सका तो रहट वाले ने कहा "आपके घोड़े की आदत आवाज सुनकर चौकन्ना होने की है। रहट की आदत टकटक करने की है।" यदि घोड़े को पानी पीना है तो उसे अपनी आदत में बदल करना होगा। आवाज सुनकर चौकन्ना होने की आदत उसे छोड़नी होगी। टक-टक होता रहे तो फिर भी वह पानी पीता रहे यदि ऐसा हुआ तो तभी घोड़ा पानी पी सकेगा अन्यथा प्यासा का प्यासा ही रहेगा।
                              इसलिए कार्य में यदि कोई छोटी-मोटी परशानी (खटर पटर) होती है, तो परेशान नहीं होना चाहिए। कार्य चल रहा है तो कुछ ना कुछ परेशानी तो आयेगी ही।

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