जय मातृभूमि जीवनभर
निशि दिन तेरा ही गुण गाएं
फिर भी तेरा पार नहीं हम पाए ।।
सबसे ऊंचा मस्तक तेरा,
चरणों में सागर का घेरा
चरणों में सागर का घेरा
दसों दिशाएं सांझ सवेरे,
तुझको शीश झुकाए
तुझको शीश झुकाए
फिर भी तेरा पार नहीं हम पाएं ।।१।।
तूने दिया खेलता बचपन,
फिर अथाह बलशाली यौवन
फिर अथाह बलशाली यौवन
शत-शत जीवन तेरी सेवा,
का हम अवसर पाए
का हम अवसर पाए
फिर अभी तेरा पार नहीं हम पाए ।।२।।
भौतिकता में जब जग मोहित,
तू थी दर्शन से आच्छादित
तू थी दर्शन से आच्छादित
समय-समय पर ईश मुखों से,
तूने धर्म उपदेश कराए
तूने धर्म उपदेश कराए
फिर भी तेरा पार नहीं हम पाएं ।।३।।
जय मातृभूमि जीवनभर
निशि दिन तेरा ही गुणगान
फिर भी तेरा पार नहीं हम पाए ।।
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